चंदौली जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार यादव ने बताया कि फसल के अच्छे उत्पादन हेतु नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटश का अनुपात - 4:2:1 होना चाहिए जबकि लगातार डी०ए०पी० और यूरिया का प्रयोग करते रहने के कारण यह अनुपात बढ़कर 28:9:1 हो गया है। जिससे यह परिलक्षित हो रहा है कि नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की मात्रा का प्रयोग फसलों में संस्तुत मात्रा से काफी अधिक किया जा रहा है। अतः किसान भाईयों से अनुरोध है कि यदि वह डी०ए०पी० के स्थान पर एन०पी०के० जैसे (12:32:16 10:26:26) फारफेटिक उर्वरक का अगर प्रयोग करेंगे तो फसल के अच्छे उत्पादन के लिए पोटाश की मात्रा उपलब्ध होने के साथ-साथ फसलों कीट रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि एवं फसलों के उत्पादन और गुणवत्ता में भी वृद्धि होगी। उन्होंने बताया कि रबी सीजन के विभिन्न फसलों जैसे चना, गटर, मसूर, गेहूँ, सरसों तथा आलू की बुवाई के लिए फारफेटिक उर्वरकों की जरूरत पड़ती है, जिसकी पूर्ति डी०ए०पी० के अलावा एस०एस०पी०, एन०पी०के० तथा तरल नैनो डी०ए०पी० से भी की जा सकती है। एस०एस०पी० में मैग्निशियम और सल्फर के अलावा बोरान और जिंक भी पाया जाता है कैल्शियम भूमि संरचना में सुधार करता है तथा सल्फर की मात्रा तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता में भी वृद्धि करता है।दलहनी फसलों में एन०पी०के० एवं० एस०एस०पी० जैसे उर्वरक डी०ए०पी० की तुलना में काफी संतुलित एवं उपयोगी है। असंतुलित मात्रा में उर्वरक के प्रयोग से लागत में वृद्धि होती है एवं पर्यावरण प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। सभी किसान भाईयों से अनुरोध है कि फसलों में अच्छे उत्पादन हेतु नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश के अनुपात को सही रखने हेतु संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें तथा साथ ही साथ सभी किसान भाईयों से अनुरोध है कि तरल नैनो डी०ए०पी० का प्रयोग प्रति एकड़ 200 मिली 1 लीटर साफ पानी में घोलकर 40 किग्रा गेहूँ बीज उपचार कर आधे घण्टे बाद बुवाई करें और बुवाई के समय फास्फेटिक उर्वरक की मात्रा आधी कर दें इससे गेहूँ के बीजों का अंकुरण बढेगा।
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