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Tuesday, November 7, 2023

लक्ष्मी के तीन रूप- लक्ष्मी, महालक्ष्मी व अलक्ष्मी- अखिलानन्द

भव्य भंडारे के साथ श्रीमद् भागवत कथा का हुआ समापन

चन्दौली डीडीयू नगर। स्थानीय काली मंदिर के समीप स्थित अन्नपूर्णा वाटिका प्रांगण में संस्कृति संजीवनी सेवा संस्थान के तत्वावधान मे चल रहे संगीतमय सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के विश्राम दिवस पर विशाल भंडारे में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। अंतिम दिवस की कथा श्रवण कराते हुए श्रीमद् भागवत व मानस मर्मज्ञ अखिलानन्द जी महाराज ने भगवान कृष्ण के विवाह प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि रूक्मिणी जी लक्ष्मी स्वरूपा है जो नारायण का ही वरण करती है। रूक्मिणी विवाह में शिशुपाल वर के रूप मे आता है। लेकिन रूक्मिणी द्वारिकाधीश का ही वरण करती है। भगवान कृष्ण जब द्वारिकापुरी से विदर्भ देश के कुंडिनपुर आते है तो जीतेन्द्रीय बनकर आते है और शिशुपाल कामी बनकर आता है। लक्ष्मी की प्राप्ति कामी नहीं बल्कि जीतेन्द्रीय को होती है। सांसारिक जीवों के लिए लक्ष्मी नारायण की है अर्थात वो हमारी मां हैं। लक्ष्मी को मां रूप मे हम रखते हैं तो लक्ष्मी कल्याणकारी व सुख प्रदान करने वाली होती है। शास्त्रों में लक्ष्मी के तीन स्वरूप बताए गये है। पहला लक्ष्मी दूसरा महालक्ष्मी व तीसरी अलक्ष्मी । लक्ष्मी स्वरूपा वो धन होता है जो धर्म व अधर्म दोनों प्रकार से होता है जो उसी मे खर्च होता है। महालक्ष्मी स्वरूपा वो धन केवल धर्म मे ही खर्च होता है अलक्ष्मी धन उसे कहते हैं जो अधर्म से आता है  जो केवल अधर्म कार्य में ही खर्च होता है।कहने का आशय है कि हम जिस प्रकार धन प्राप्त करते हैं वह धन उसी कार्य मे खर्च होता है इसलिए मानव को सदैव ध्यान रखना चाहिए की वह धर्म पूर्वक ही धन ग्रहण करें। भगवान श्री कृष्ण विवाह पर उन्होंने कहा कि द्वारिकाधीश का विवाह रूक्मिणी जी के साथ साथ जामवंती, सत्यभामा, लक्ष्मणा, कालिन्दी के विवाह पर विशेष रूप से प्रकाश डाला। कहा कि भगवान भक्त के आधीन होते है सुदामा जी बाल सखा भी है और परम भक्त भी । जीव यदि निष्काम भक्ति करता है वह भगवान को प्रिय हो जाता है जो अनन्य भाव से भक्ति करता है तो भगवान उसके सुखदुख के साथी हो जाते है। सुदामा की दशा को देख कर अपनी करूणा द्वारा अनुग्रह करके अपने को धन्य करते है। इसीलिए सभी मार्गों मे भक्ति मार्ग महाश्रेष्ठ बताया गया है। सुदामा जी सदैव धर्म का पालन करते हुए भगवान की आराधना करते है और ऐसा मानते है कि भगवान जैसे रखते है वैसे रहते है। यदि जीव को जीवन मे दुख हो तो उसे भगवान के शरणागत हो जाना चाहिए जबकि सुख मे भगवान के कृपा की अनुभूति करनी चाहिए। कथा समापन पश्चात महाराज अखिलानंद जी का जन्मोत्सव पर भक्तों द्वारा  उनका सम्मान करते हुए अंगवस्त्र स्मृतिचिन्ह सहित विभिन्न उपहार प्रदान कर अभिनन्दन किया गया । इसके अलावा महाराज जी ने अपने भक्तों व कथा समिति की टीम को आशीर्वचन देते हुए सभी का सम्मान किया। मौके पर शशि शंकर सिंह, संजय पाण्डेय,रंजय पाण्डेय ,ओमप्रकाश सिंह ,आलोक सिंह, सदानंद दूबे जी,अनिल सिंह,मनोज पाण्डेय, गोपाल शर्मा, ओम तिवारी, पी एन सिंह, उपेन्द्र सिंह, बृजेश सिंह संजय अग्रवाल, संतोष शर्मा,यज्ञनारायण सिंह, दिनेश सिंह, कन्हैयालाल जायसवाल, छाया पाण्डेय, पूनम सिंह, रेखा अग्रवाल, संतोष पाठक, राजेश तिवारी, विकास चौबे,आलोक पांडेय, पवन शुक्ला, शिवम तिवारी, वैभव तिवारी भागवत नारायण चौरसिया, बंटी सिंह, मिथलेश मिश्रा, सुमित सिंह,मनोज श्रीवास्तव , नरेन्द्र मिश्रा ,अशोक कुमार सिंह , विजय यादव, शिवम्,संदीप, विजय कुमार आदि सहित सैकड़ों श्रोताओं ने कथा को श्रवण कर भाव विभोर हुए।



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