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Monday, September 7, 2020

आम-अवाम की आवाज थे 'मित्रसेन'

रिपोर्ट-संतोष कुमार यादव

अयोध्या की धरती में पैदा हुए मित्रसेन यादव ऐसे राजनेता नेता थे, जिन्हें 6 बार विधायक एवं 3 बार सांसद रहने का मौका मिला लेकिन उन्हें राजरोग नही लगा। उनकी सादगी उनकी पहचान थी। आम अवाम


की वे बुलंद आवाज थे। विधायक सांसद रहें न रहें क्षेत्र में, जनता में, उनकी सक्रियता एक जैसी रहती थी। वे भीड़ के नेता थे,राजनेता से पहले जननेता थे।  वे बनावटी नही थे। उनका देशी अंदाज लोगों को खूब भाता था। उनकी कड़क आवाज, जनता का काम करने-कराने का उनका तरीका, अधिकारियों से बात करने का उनका लहजा, सब कुछ अलहदा था। अयोध्या फैजाबाद जिले की मिल्कीपुर एवं बीकापुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक एवं सांसद रहे मित्रसेन यादव सत्ता में रहे या विपक्ष में यह कभी उनके लिए मायने नही रहा। दल कोई भी रहा हो उन्होंने हमेशा दल के ऊपर दम पर की राजनीति की। अपनों के बीच बाबूजी / दादाजी के नाम से मशहूर वामपंथी विचारधारा की सोच समाजवादी नायक को

जो लोग अपने को किसी दल का नेता या कार्यकर्ता मानते हैं उन्हे उनकी ताकत का एहसास था। विरोधी भी उनकी राजनीतिक क्षमता के कायल थे। वे ऐसे नेताओं की जमात मे शामिल थे जो दूसरों को विधायक प्रमुख जिला पंचायत सदस्य, अध्यक्ष बनाते रहे हैं। उनके राजनीतिक कौशल का विपक्षी भी लोहा मानते थे। फैजाबाद जिले की राजनीति उनके इर्दगिर्द घूमती थी। उ0प्र0 के अयोध्या फैजाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर भिटारी गांव में संभ्रांत परिवार भगवती प्रसाद यादव के घर 11 जूलाई 1934 को जन्में मित्रसेन यादव बचपन से ही अन्याय अत्याचार के खिलाफ थे। गरीबों, दलितों, शोषितों, पीडितों के लिये उनके मन में दर्द था। इण्टर तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह सेना में भर्ती हो गये। लेकिन वहां उन्हे लगा कि यहां रहकर समाज की आखिरी लाइन में खड़े व्यक्ति के लिये कुछ नहीं कर सकते। पारिवारिक परिस्थतियों का हवाला देकर सेना की नौकरी से त्यागतत्र दे दिया और घर लौट आये। अन्याय अत्याचार के विरुद्ध किसानों मजलूमों के लिये संघर्ष का बीड़ा उठाया। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी व विधायक रहे स्व0 राजबली यादव की प्रेरणा से कम्युनिस्ट पार्टी के लाल झण्डे के नीचे सक्रिय राजनीति में कदम रखा। साइकिल से घूम-घूमकर क्रान्ति के बीज बोने लगे। 1963 में जमींदारी एवं किसानों के मध्य हुए एक संघर्ष में चर्चित हत्याकाण्ड में कुछ लागों के साथ इनका नाम जोड़ा गया। जिसमें आजीवन कारावास की सजा हुई। 13 माह तक जेल मे रहे। हालाकि बाद में महामहिम के यहां से इस प्रकरण में इन्हें मुक्ति मिल गई। यह वह दौर था जब स्व राजबली यादव का जगह-जगह नाटक मंचन के जरिये जागरुकता फैलाई जा रही थी। धीरे-धीरे मित्रसेन की लोकप्रियता सर्वहारा समाज में बढ़ती गई उसकी परिणति इस रुप में हुई कि 1977 में पहले ही चुनाव में मिल्कीपुर विधानसभा से कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक चुन लिये गये। संघर्षों का सिलसिला गतिमान रहा। 16 वर्षों तक कम्युनिस्ट पार्टी लाल झण्डा, लाल सलाम क्षेत्र में दिखता और गूंजता  रहा। इसी दल से चार-बार विधायक एक बार सांसद रहे। इन्ही के दम पर फैजाबाद जिला कम्युनिस्टों का गढ़ बन गया। इनके जुझारुपन तेवर को देखते हुए भाकपा ने इन्हे राज्यसचिव एवं केन्द्रीय कमेटी में भी स्थान दिया। मित्रसेन ने देश व्यापी खाद्यान आन्दोलन में धर्मनिर्पेक्षदलों का जहां नेतृत्व किया, वहीं 1986 में साम्प्रदायिकता के खिलाफ एक बड़ा बिगुल भी फूंका। जिसमें कम्युनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत, सोमनाथ चटर्जी, के0 विक्रमराव, शबाना आजमी जैसी कई हस्तियां कार्यक्रम का हिस्सा बनी। मित्रसेन राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर उस समय छाये जब राम मन्दिर को लेकर भाजपा पूरे देश में हिन्दू मतों के धुर्वीकरण में लगी थी। उस वक्त मित्रसेन यादव ने भाजपा को फैजाबाद से हराकर संसद में पहली बार कदम रखा। देश-विदेश की मीडिया में मित्रसेन के तेवर और सियासत में उनकी जमीनी पकड़ पर लम्बे समय तक बहस होती रही। संघर्षों के दम पर ही उन्होंने समर्थको की लाखों फौज खड़ी की थी, जो उनकी एक आवाज पर मर-मिटने को तैयार रहते थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जब उनसे साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ साथ मिलकर लड़ने की पेशकश की तो वह उनके साथ चले गये। सपा में भी उनका ये सघर्ष जारी रहा। जहां वो दो बार विधायक एक बार सांसद चुने गये। बीच में टिकट न मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ कर अपनी जमीनी पकड़ का एहसास भी कराया। बसपा ने 2004 में उन्हें अपना लोकसभा प्रत्याशी बनाया और उन्होने चुनाव जीतकर जिले में पहली बार बसपा का खाता खोला। संगठन में भी उन्हें प्रदेश महासचिव की जिम्मेदारी दी गई। हलाकि अपने तेवर के चलते वे वहां ज्यादा दिन तक नहीं टिक सके। पुनः सपा में आ गये। उनकी सेटिंग सीट मिल्कीपुर विधानसभा इस बार आरक्षित हो जाने से पड़ोस की बीकापुर विधानसभा से टिकट मिला और विधायक बने। मित्रसेन यादव अयोध्या जिले की एकमात्र ऐसी शख्सियत रहें, जो सपा, बसपा तथा भाकपा सहित तीन दलों से सांसद रहे। दुबारा इन दलों से कोई सांसद नहीं हो सका।

उनका प्रभाव पूरे पूर्वांचल पर था। वह सर्वहारा वर्ग के सर्वमान्य नेता थे। मजलूमों, गरीबों, किसानों की आवाज को कभी दबने नहीं दिया। शायद यही वजह रही उनकी मृत्यु का समाचार जिसको जहां मिला जो जैसे थे वैसे ही सीधे बाबूजी के दर्शन को दौड़ पड़ा। उनके शहीद भवन आवास से गांव भिटारी तक राजनेताओं प्राशासनिक अधिकारियों समर्थकों शुभचिन्तकों का जमावड़ा रहा। भीड़ का ये आलम रहा कि इलाहाबाद फैजाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर प्रशासन को रुट डायर्वजन करना पड़ा। बाबूजी की यह सामयिक मृत्यु भी असाधारण घटना थी। वह साधारण मानव नहीं थे। युग पुरुष थे। न जाने कितने लोगों को जीना सिखा दिया। छः बार विधायक तीन बार सांसद रहे मित्रसेन का जीवन खुली किताब की तरह रहा। जनता के बीच रहना, खाना, सोना उनका शगल था। विलासिता का जीवन कभी जाना ही नहीं। उनका जाना राजनीति के एक युग का अन्त माना जा रहा है। लम्बे समय तक सांसद विधायक रहे मित्रसेन यादव ने 2004 में सांसदों की अगुवाई करते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ में जहां भाषण दिया वहीं श्रीलकां कनाडा, चीन इग्लैण्ड, अमेरिका, सिंगापुर सहित विदेशों में सांसदां के प्रतिनिधि मण्डल दल की अगुवाई की विभिन्न विभागों की संसदीय समितियों में बतौर सलाहकार भी शामिल रहे। वर्ष 2012 में उ0प्र0 विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर भी रहे।



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