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Wednesday, September 30, 2020

सामूहिक दुष्कर्म : मनुष्यता पर बदनुमा दाग

लखनऊ इस पृथ्वी पर लाखों जीव मौजूद हैं। सभी जीवों में कुछ नर होते हैं और कुछ मादा। सभी अपनी – अपनी वंशावली में वृद्धि करने और उसे सतत बनाएँ रखने के लिए संतति पैदा करने के लिए मैथुन करते हैं। उनके मैथुन के अपने अपने तरीके होते हैं। कुछ लोगों का समय भी निश्चित होता है। इस पृथ्वी का सबसे समझदार, बुद्धिजीवी, संस्कारित कहा जाने वाला जीव मनुष्य है । मनुष्य में

भी नर और मादा का प्रावधान है। नर को पुरुष कहते हैं और मादा को औरत कहते हैं। पृथ्वी पर मानव संस्कारित रूप में अपना जीवन यापन करे, इसके लिए संस्कार निश्चित किए गए हैं। यानि एक निश्चित उम्र के बाद और एक निश्चित परिपक्वता के बाद भी पुरुष और स्त्री को मैथुन की सामाजिक अनुमति है। उसके लिए विवाह संस्कार का प्रावधान है। इस पृथ्वी पर जितने भी जीव हैं, उनमें किसी को भी दो बातें सिखाई नहीं जाती हैं। एक भोजन करना और दूसरा मैथुन करना । मनुष्य के घर में जब बच्चा पैदा होता है, तो उसके अन्नप्रासन का भी संस्कार है। लेकिन जब तक वह खाद्य अखाद्य में भेद नहीं कर पाता है, तब तक उसके हाथ में जो कुछ भी आता है, उसे मुंह में ही डालता है। इस संदर्भ में मैंने कहा की बच्चे को भी भोजन करना सिखाया नहीं जाता है। यही बात मैथुन के संदर्भ में भी कही जा सकती है । जब एक लड़के और लड़की का विवाह होता है, तो उसे मैथुन की कोई शिक्षा नहीं दी जाती है। जब पति – पत्नी के रूप मे दोनों सहवास करते हैं, तो मैथुन की प्रक्रिया स्वत: सीख लेते हैं ।

भारतीय समाज में स्त्री – पुरुष के बीच में मैथुन के एक गोपनीय विषय रहा है। उसके संदर्भ में कोई भी खुल कर बात नहीं करता है। आधुनिक हो जाने के बाद भी अभी भी इस विषय पर पर्दा पड़ा हुआ है । इसके शिक्षण की बात तो बहुत की जाती है। लेकिन अभी तक इस पर कोई सैद्धान्तिक शिक्षण शुरू नहीं हो पाया है। हाँ, इतना जरूर है। आज जिस संचार क्रान्ति के युग में मनुष्य जी रहा है। ऐसे गोपनीय विषयों पर अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए लोग गूगल कर लेते हैं। और आधी अधूरी सैद्धान्तिक जानकारी भी प्राप्त कर लेते हैं । भारतीय समाज में मैथुन के संबंध में बड़ा ही पवित्र भाव पाया जाता है। जब तक लड़की विवाह बंधन में बंध न जाये, तब तक उसे मैथुन करने की आजादी नहीं होती है। वैसे आज यह वर्जना टूटती नजर आ रही है। लेकिन फिर भी मैथुन विषय को इज्जत के साथ जोड़ दिया गया है। सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ जोड़ दिया गया है। शुचिता के साथ संदर्भित कर दिया गया है। इसी कारण इसके प्रति मानव से दानव बना मनुष्य काफी क्रूर हो गया है। अभी कुछ साल पहले की ही बात है, करीब दो दशक पहले की। समाचार पत्रों में कभी-कभार बलात्कार की घटनाएँ प्रकाश आती थी। यानि एक पुरुष द्वारा एक स्त्री के साथ जबर्दस्ती बिना उसकी मर्जी के संसर्ग करना । पहले ऐसा कुँवारे लड़के और लड़कियों के बीच होता था। बाद में ऐसी घटनाएँ शादीशुदा मर्दों और शादीशुदा औरतों के द्वारा और साथ भी क्रमश: होने लगा। और अब स्थिति यह हो गई है कि हर दूसरे तीसरे दिन, या सप्ताह बीतता नहीं, कि सामूहिक  बलात्कार की घटनाएं देखने, सुनने और पढ़ने को मिल जाती हैं । अति आधुनिक होने के बाद भी ऐसी घटनाओं पर लोगों के मन में वितृष्णा का भाव आ जाता है । कभी कभार इसके खिलाफ पूरा समाज अपनी प्रतिक्रिया भी अभिव्यक्त करता है। पुरजोर विरोध प्रदर्शन भी होते हैं। पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई भी की जाती है। फिर भी महिलाओं के प्रति यह क्रूरतम अपराध बंद नहीं हो रहा है। आज का मानव चाहता क्या है ? वह इतनी नीचता पर कैसे उतर आ रहा है। किसी के चीत्कार, किसी के विलाप में उसे कैसे आनंद मिलता है। किसी की दर्द भरी चीख कैसे किसी को खुशी दे सकती हैं, जब इस पर विचार करता हूँ, तो चेतना शून्य हो जाती है। ऐसा लगता है कि यह तो मनोविकारी हैं। आज ऐसे घृणित अपराध करने वाले मनोविकारी हर जगह घूम रहे हैं । कब, किसके अंदर का दानव जाग उठेगा, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है ।

ऐसे में जब पूरे देश में लॉक डाउन हो। कोरोना संक्रमण की वजह से लोग एक दूसरे से दो गज की दूरी बनाए रख रहे हैं। अपने मुंह पर मास्क लगाए हुए हैं। एक दूसरे को छूने से बच रहे हैं। ऐसा संक्रमण जिसकी कोई दवा नहीं है। अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बनी है। ऐसे माहौल में भी महिलाओं के प्रति यह घोरतम अपराध रुक नहीं रहा है । अभी जल्द ही एक घटना हाथरस में घटी । जिसे जेएन मेडिकल कालेज अलीगढ़ में भर्ती कराया गया। उसकी इतनी हालत खराब थी कि दो दिन बाद उसे दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया। उसके साथ किस हद तक और कैसी बहशियाना हरकत हुई होगी, इसकी कल्पना इसी से की जा सकती है। उस लड़की को जब-जब होश आता, दर्द से पुनः बेहोश हो जाती है। डाक्टरों द्वारा तमाम प्रयास के बाद भी उसे दर्द से राहत नहीं मिल पा रही थी। आज जब मेडिकल क्षेत्र में एक से बढ़ कर एक पेन किलर हैं। फिर भी वे पेन किलर प्रभावी नहीं है, उस लड़की के साथ हुई बहशियाना हरकत की हद की कल्पना आप कर सकते हैं । हालांकि इसकी भनक जल्द ही राजनेताओं को भी लग गई। लोग मेडिकल कालेज पहुंचे, डाक्टरों पर बेहतरीन इलाज का दबाव डाला और पुलिस अधिकारियों से आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने को कहा। इस कारण पुलिस भी काफी सक्रिय हुई। उसके सामने भी गैंग रेप पीड़िता को न्याय दिलाने और आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, इसकी पुख्ता कार्रवाई करती दिखी । अमूमन ऐसे मसलों पर पुलिस बिना किसी के दबाव में आए, कड़ी कार्रवाई ही करती है ।

इसी प्रकार की एक घटना पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में प्रकाश में आई । यह घटना परसपुर थाना क्षेत्र की है। 13 जुलाई, 2020 की शाम वह  शौच के लिए बाहर गई हुई थी। उसके इंतजार में कुछ लोग घात लगाए बैठे हुए थे। लौटते समय मुंह दबाकर अपनी गाड़ी में बैठा लिया। एक अज्ञात स्थान पर ले जाकर तीन रात तक उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म करते रहे। चौथे दिन उसे चौराहे के पास लाकर छोड़ दिया। आरोपियों की हिम्मत देखिये, तीन दिन तक सामूहिक  दुष्कर्म करने के बाद भी उसे जान से मारने की धमकी दी कि अगर किसी को बताया तो तुम्हें जान से मार दिया जाएगा । इस घटना से जहां क्षेत्रीय लोगों में आक्रोश है। वहीं पुलिस उसकी तहरीर लेने से भी आना-कानी कर रही है ।

ऐसी एक घटना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में प्रकाश में आई है। यह सामूहिक  दुष्कर्म की घटना चलती बस में हुई है। सामूहिक  दुष्कर्म करने के बाद उस महिला को चलती बस से फेक दिया गया। जिससे उसका प्राणान्त हो जाए। लेकिन वह मरी नहीं। हलक तो तब सूखने लगता है, जब यह पता चलता है कि एक ही महीने में चलती बसों में अभी तक तीन और महिलाओं से साथ गैंग रेप हो चुके हैं ।

सामूहिक  दुष्कर्म की शिकार महिला ने बताया था कि भैसाली बस स्टैंड से बस में सवार हुई थी। बस में उसे कोल्ड ड्रिंक दी गई, जिसे पीने के बाद वह बेहोश हो गई और पूरी रात ड्राइवर और कंडक्टर ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। पीड़िता मेरठ जिले के सरधाना शहर की मूल निवासी है।ऐसी घटनाओ की फेहरिश्त बहुत लंबी है । उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई जिला हो, जहां इस प्रकार की घटनाएँ न हुई हों। कहने का तात्पर्य यह है। जैसे जैसे समाज शिक्षित होता जा रहा है। आधुनिक कहलाने में गर्व का अनुभव कर रहा हो। दुनिया को जीतने का उसके पास हौसला हो। ऐसे में वह इतना गिर जाएगा, ऐसी घटनाएँ पढ़ – सुन कर भी विश्वास नहीं होता है । लेकिन ऐसी घटनाएँ लगातार देश और प्रदेश के किसी न किसी कोने हो रही हैं। यह भी सच है। ऐसी घटनाओं के खिलाफ लोगों में गुस्सा भी है, यह भी सच है। ऐसी घटनाएँ काफी संवेदनशील होती हैं, इसलिए पुलिस उन पर त्वरित कार्रवाई भी करती है, यह भी सच है । लेकिन ऐसी घटनाएँ रुक नहीं रही हैं, यह भी सच है। सरकार इन्हें रोकने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है, यह भी सच है। लेकिन इसके बाद भी ऐसी घटनाएँ रुक नहीं रही हैं। इसका मतलब साफ है कि ऐसी घटनाएँ सिर्फ सरकार के सख्त कदम उठाने से नहीं रुक सकती हैं। ऐसी घटनाएँ सिर्फ पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई करने से नहीं रुक सकती हैं, ऐसी घटनाएँ सिर्फ आरोपियों को दंड देने से ही नहीं रुक सकती है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सम्पूर्ण समाज, सम्पूर्ण व्यवस्था को एक साथ खड़ा होना होगा। ऐसे लोगों के खिलाफ समाज को ही नहीं, उनको भी खड़ा होना पड़ेगा, जिनके परिवार के ये सदस्य हैं। समाज जिस दिन सख्त हो जाएगा। समाज जिस दिन उनके खिलाफ सामाजिक बहिष्कार के साथ-साथ उनका हुक्का पानी बंद कर देगा, उस दिन से ऐसी बहशियाना घटनाएँ रुक सकती हैं। जिस समाज में यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता की बात कही गई हो। उस समाज में महिलाओं के साथ आये दिन होने वाले सामूहिक  बलात्कार बदनुमा धब्बे हैं। यह दाग न पड़े, आधी आबादी को भी भयमुक्त होकर विचरण करने का अधिकार मिले, वाकई मिले। इसके लिए पुरुष समाज को आगे आना होगा। क्योंकि इस धरा की हर स्त्री किसी न किसी की माँ, बहन, भाभी, काकी आदि होती है ।


लेखक-प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट।



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